अपने सहकर्मियों के बीच डीए के नाम से बुलाए जाते हैं इंडियामार्ट के संस्थापक और सीईओ 46 वर्षीय दिनेश अग्रवाल. नोएडा एक्सप्रेस वे पर नोएडा के सेक्टर 142 में एडवेंट-नेविस नाम की बहुमंजिला इमारत में तीन मंजिलों पर करीब एक लाख वर्ग फुट में फैला है कंपनी का मुख्यालय. इस इमारत में मौजूद 1,200 कर्मचारियों में से कोई भी अपने इस सरल-सहज बॉस से खौफ नहीं खाता. वजह भी तो जानिएः आज तक उन्होंने किसी को निकाला नहीं है. मुश्किल समय में भर्तियां बंद कर दीं, तनख्वाह थोड़ी देर से दे दी लेकिन छंटनी नहीं की.
नतीजे में उन्हें अपने विजन के साथ कर्मचारियों की ऐसी ताकत मिली कि इंडियामार्ट आज 1688.कॉम (चीन की अलीबाबा) के बाद दुनिया में ऑनलाइन कारोबार करवाने वाली सबसे बड़ी कंपनी बन गई है. आज इंडियामार्ट एक ऐसी ऑनलाइन मंडी है, जिसके वर्चुअल यार्ड में तीन करोड़ से ज्यादा प्रोडक्ट लिस्टेड हैं और जिसके पास दो करोड़ से ऊपर खरीदार हैं. 50 तरह की इंडस्ट्रीज का आठेक सौ किस्म का सामान यहां उपलब्ध है. इरफान खान को लेकर बनाए गए कंपनी के कॉमर्शियल की टैगलाइन देखिएः काम यहीं बनता है.
यह एक तरह से अग्रवाल के सोच से जुड़ी लाइन थी. उनका आत्मविश्वास ईष्र्या करने लायक है, “खारी बावली की किसी गली के छोटे-से प्रोडक्ट से लेकर देश के किसी भी हिस्से के बड़े प्रोडक्ट का सप्लायर इंडियामार्ट पर न मिले, यह संभव नहीं. हमारे यहां नहीं मिला तो इंटरनेट पर तो नहीं ही मिलेगा.” राह चलते हुए भी वे इधर-उधर पड़े किसी सामान का पैकेट उठाकर वहीं से फोन करके कर्मचारियों से पूछने लगते हैं कि “यह कंपनी हमारे कैटलॉग में है या नहीं? डालो इसे.” कर्मचारी उनकी इस आदत से कई बार खीझ भी जाते हैं.
इंडियामार्ट का चमत्कारी फैलाव उनके इसी विजन का कमाल है. एक अनुमान के अनुसार, पिछले साल इंडियामार्ट की मंडी से 20,000 करोड़ रु. का धंधा हुआ. इसकी साइट पर वैसे तो सप्लायरों की तादाद 20 लाख है लेकिन पैसे देकर इसकी सेवा लेने वाले सप्लायरों की संक्चया इसी सितंबर में एक लाख पार हुई, जिसका कंपनी ने जश्न मनाया. अपनी सेवाओं के लिए वह 500 रु. से लेकर डेढ़ लाख रु. तक लेती है. पिछले साल उसका राजस्व 200 करोड़ रु. रहा.
दिनेश अग्रवाल वही शख्सियत हैं, जो सन् 2000 के आसपास दिल्ली के पटपडग़ंज इलाके में रहते हुए दो बड़े-बड़े झोलों में लिफाफे भरकर डाकघर ले जाते थे. वहां कर्मचारी कई दफा टोकतेः “इतने लिफाफे लाल बंबे में मत डाला करो…इन पर बैठकर मुहर भी खुद ही मारो…और कुछ चाय-पानी का!” वे सारा कहा विनम्रता से मानते गए. काम ही उन्होंने कुछ ऐसा शुरू किया था.
उत्तर प्रदेश के दूरदराज के बहराइच जिले में भी छोटे-से नानपारा कस्बे के उद्यमी परिवार में जन्मे और आठवीं तक वहीं पढ़े थे वे. पांच भाई-बहनों में वे तीसरे थे. साढ़े पांच फुट लंबे दिनेश ने बाद में कानपुर के एचबीटीआइ से बी.टेक किया. उसके बाद सीएमसी और सीडॉट में नौकरी के दौरान रेलवे के आरक्षण और यूपीएससी में परीक्षाओं के कंप्यूटरीकरण संबंधी अहम प्रोजेक्ट्स में हाथ आजमाया. फिर वे एचसीएल चले गए और अमेरिका जा पहुंचे. पांच साल बाद ही मुल्क में खुद का कोई ऑनलाइन कारोबार शुरू करने का सपना लेकर अक्तूबर 1995 में उन्होंने वापसी की उड़ान पकड़ी.
बीएसएनएल ने उसी साल 15 अगस्त को इंटरनेट लॉन्च किया था. वापसी का यह मौका उन्होंने इसीलिए चुना था. लेकिन यहां आने पर पता चला कि तब तक इंटरनेट का सारा उपक्रम सरकारी हलके में ही है. अब? कनॉट प्लेस के युनाइटेड कॉफी हाउस में दोस्तों के साथ बियर पर चर्चा के दौरान आइडिया आया कि वेबसाइट बनाने का काम शुरू किया जाए, साथ ही साथ छोटे शहरों के निर्यातकों की चुनिंदा चीजों की डायरेक्टरी बनाकर अपनी साइट पर डाल अमेरिका और दूसरे विकसित देशों के ग्राहकों को बताया जाए, क्योंकि वहां तब तक इंटरनेट पॉपुलर हो चुका था. नेट पर ऑर्डर मिलने पर अपने एक छोटे-से कमरे में कंप्यूटर से उसका प्रिंट निकालते. पत्नी चेतना और मां केसर देवी के साथ लगकर दिन भर बैठ इन्हें लिफाफों में पैक कर, छोटे शहरों के संबंधित निर्यातकों को डिस्पैच करते क्योंकि उनके पास नेट नहीं होते थे. तरकीब चल निकली.
डॉटकॉम का बुलबुला फूटना इंडियामार्ट के लिए नए सूर्योदय की तरह था. उस दौर में भी सन् 2000 में इंडियामार्ट ने 6.2 लाख रु. का लाभ कमाया तो बिजनेस वर्ल्ड पत्रिका ने उसे कवर स्टोरी बनाया. इसने दिनेश को बड़ी ताकत दी. वे याद करते हैं, “हमारा कन्फ्यूजन दूर हो गया और फिर तय हुआ कि एक्सपोर्ट वाले काम पर ही फोकस किया जाए.” सन् 2000-2003 तक का समय मुश्किल समय रहा. खर्चे कम किए गए, 200-250 कर्मचारी 15-16 घंटे काम करते. नतीजाः 2004-2006 कंपनी के लिए सुनहरे साल बन गए. दस शहरों में दफ्तर खुल गए. इस दौरान रेवेन्यू 18-20 करोड़ रु. का था.
उनकी कहानी में ऐसा ही नाटकीय मोड़ 2001 में आया था. 10 सितंबर को उन्होंने एक करोड़ रु. में नोएडा सेन्न्टर-8 में 18,000 वर्ग फुट जमीन लेकर भूमिपूजन किया ही था कि अगले दिन 9/11 कांड हो गया. अमेरिका से ही बिजनेस आता था. आधा हो गया वह.
राजस्थान के शेखावाटी से निकले उनके पूर्वज यूपी में नेपाल से लगे तुलसीपुर से रंगून बनकस (एक तरह की रस्सी) का कारोबार करते थे. वहीं से नानपारा पहुंचे थे. विरासत में मिली उद्यमिता और दूरदर्शिता का ही नतीजा था कि उन्होंने निर्यात के क्षेत्र में चीन के तेज उभार को भांप लिया और धीरे-धीरे घरेलू बाजार को भी आधार बना लिया. देश भर के 25 बड़े शहरों में तो उनके दक्रतर हैं.
अभी तक छोटे और मझोले उद्यमियों तक सीमित इंडियामार्ट अब टाटा, बिड़ला, अंबानी जैसी बड़ी कंपनियों के दरवाजे पर दस्तक देने जा रही है. यह मुमकिन हुआ तो कारोबार की एक अनंत दुनिया खुल जाएगी. और वैसे भी भारतीय बाजार में एक महत्वाकांक्षी पहल तो वे कर ही रहे हैं ह्लशद्यद्ग3श.ष्शद्व के रूप में, एक ऐसी साइट जो उपभोक्ता की जरूरत का उम्दा सामान खुद तलाश कर उसे उसकी चौखट पर पहुंचाएगी. अमेरिका रिटर्न होकर भी हिंदी बातचीत में ही सहज महसूस करने वाले दिनेश ऑनलाइन मंडी में क्रांति तो करके रहेंगे.
Read more at http://aajtak.intoday.in/story/india-mart-1-845614.html